आज्ञा न मानकर विवाह करना और सन्तान उत्पन्न करना स्वीकार नहीं किया।
2.
इस प्रकार मनुष्य जाति की सुरक्षा और विकास के लिए भी अपना स्वरूप या सन्तान उत्पन्न करना नितान्त आवश्यक है।
3.
इस प्रकार मनुष्य जाति की सुरक्षा और विकास के लिए भी अपना स्वरूप या सन्तान उत्पन्न करना नितान्त आवश्यक है।
4.
अर्थात् ‘‘ सन्तान उत्पन्न करना, उत्पन्न हुई सन्तान का भली-भाँति पालन-पोषण करना और प्रतिदिन भोजन आदि बनाकर लोक यात्रा का निर्वाह करना-यह सब प्रत्यक्ष रूप से स्त्री के आधीन है।
5.
दक्ष प्रजापति ने पंचजनी स्त्री से १ ० हजार पुत्र उत्पन्न किये, हर्यश्व आदि और असिक्नी से १ ०००, सबलाश्व आदि पुत्र उत्पन्न किये परन्तु ये सब हर्यश्व और सबलाश्व आदि देवर्षि नारद जी की प्रेरणा से पश्चिम समुद्र के तट पर, नारायण सर पर तपस्या करने के लिए गए और निवृति मार्ग को अपनाया अर्थात उन्होंने अपने पिता ब्रह्मा की आज्ञा न मानकर विवाह करना और सन्तान उत्पन्न करना स्वीकार नहीं किया।